Atul Kumar Srivastava
Membeजब पता हैं की वो दिन भी ननश्चय ही आ सकता हैं ।
तो क्या इसके समाधान में वृक्ष लगाया जा सकता हैं ?
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त्यौहार मनुष्य को ककतना समीप ले आते हैं । पास और पास, संभवतः इतना ननकट की वो आ पाए अपने पररजनों , अपने घर पररवार और अपने बचपन के ममत्रों के पास । पर मैं अक्सर सोचता ह ं की क्या कभी पयाावरण के जीवन में कभी कोई त्यौहार आ पाएगा क्या ? मैने अक्सर देखा हैं , जब जब ये त्यौहार आते हैं मनुष्य उतावले होकर घोर पाप करते हैं । पयाावरण का हनन करने का पाप । होली के पवा पर होमलका दहन हेतु वृक्षों को काटते , तोड़ते , चोट पहुंचाते देखा हैं । म नता ववसजान के नाम पर पववत्र गंगा / जल को द वित , कलुवित करते देखा हैं । ईद में बेजुबानों की बमल चढ़ते देखा हैं । जजस त्यौहार के आने पर तुम उनका ही हनन करते हो जजनसे तुम्हारा अजततत्व हैं , जजनसे तुम जीववत हो । मैं प छता ह ं उनको दुख पहुंचाने के मलए ये खुमियां मनाते हो या खुद को बबााद करने की ? खैर , मैने सोच रहा था की कब आएगा पयाावरण के जीवन में त्यौहार ? जब वो सब भी मनुष्य के भांनत ही खुमियां मनाएंगे । तभी मुझे ध्यान आया। अरे! हां , इन पयाावरण , वृक्षों , नददयों , जानवरों , पृथ्वी का भी त्यौहार आने वाला हैं। पयाावरण ददवस , जल संचचत ददवस , वृक्षारोपण ददवस , आदद । जब यही इंसान , वृक्षों के साथ फोटो खीच खीच कर प रे दुननया को ददखाएंगे । और ढेर सारे नारे लगाएंगे । और कहेंगे की पेड़ों को मत काटो , ये बेचारे हमलोग के सहायक हैं , ित्रु नहीं ।
परंतु आरंभ से ही मनुष्य के आदत में िाममल हैं ठोकर खाकर संभलना । संभवतः अभी भी देर नहीं हुआ , यदद मनुष्य अपने आगामी जीवन को ऐसे ही नष्ट करता रहा , तो वो ददन द र नहीं जब उसे अपने ही बोए गए वविैले वृक्ष के साए का सहारा लेना पड़ेगा । अभी भी यदद चचंतन , मनन , अध्ययन , ककया जाए तो समाधान के रूप में हम एक जुट होकर कल के मलए एक नव सुखात्मक ववश्व को तैयार कर सकते हैं , जहां सभी ममलकर एक ही आसमान के तले चैन व सुक न की सांस ले सके ।
~। अतुल कुमार श्रीवाततव
Atul Kumar Srivastava | B.A. (H) Hindi | 2nd Year | Haritima Member